Safar ki Dua | सफर की दुआ | तरीका और सावधानियाँ

Safar ki Dua | सफर की दुआ | तरीका और सावधानियाँ

सफ़र का मतलब क्या है?

सफ़र (سفر) एक अरबी शब्द है जिसका मतलब यात्रा करना, यात्रा पर जाना या परिवहन से है। यह चाँद के कैलेंडर (lunar calendar) का दूसरा इस्लामी महीना भी है और वह महीना है जब मुसलमान भोजन इकट्ठा करने के लिए अपने घर खाली कर देते थे।

हदीस और पैगंबर (ﷺ) की सुन्नत के हिसाब से, कई दुआएं हैं जिन्हें कोई भी सफर/यात्रा पर जाने के लिए पढ़ सकता है और हम इस एक पॉट में उन सभी को शामिल करेंगे। इनका इस्तेमाल सफर के किसी भी तरीके के लिए किया जा सकता है चाहे वह हवाई जहाज हो, कार हो या नाव से हो, या मोटर साईकल हो ।


सफर की दुआ

Safar ki Dua in Hindi

سُبْحَانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَـٰذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ وَإِنَّا إِلَىٰ رَبِّنَا لَمُنقَلِبُونَ

Transliteration: Bismiallahi wa alhamdu liallahi. Subhanaalladhi sakh-khara lana hadha wa ma kunna lahu muqrinin. Wa inna ila Rabbi-na la munqalibun.

तर्जुमा: पाक है वह ज़ात जिसने इस सवारी को हमारे क़ाबू में कर दिया है, हालांकि हम इसे अपने क़ाबू में नहीं कर सकते थे। हम अपने रब की ओर लौट कर जाने वाले हैं।


मंजिल पर पहुंचने पर यह दुआ करें

اللَّهُمَّ رَبَّ السَّمَاوَاتِ السَّبْعِ وَمَا أَظْلَلْنَ وَرَبَّ الَأَرَضِينَ السَّبْعِ وَمَا أَقْلَلْنَ وَرَبَّ الشَّيَاطِينَ وَمَا أَضْلَلْنَ وَرَبَّ الرِّيَاحِ وَمَا ذَرَيْنَ فَإِنَّا نَسْأَلُكَ خَيْرَ هَذِهِ الْقَرْيَةِ وَخَيْرَ أَهْلَهَا وَنَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَشَرِّ أَهْلِهَا وَشَرِّ مَا فِيهَا

Transliteration: Allhum rab alsamawat alsbʿ wama aẓlun wa-rab alarḍyn alsbʿ wama aqlun warab alshayaṭyn wama aḍlun warab alryaḥ wama duhryn finna nasalak khayr hudh alqarya wkhyr ahlha wanʿwdh baka mn shrha washr ahlha washr ma fyha.

तर्जुमा : "ऐ अल्लाह! सातों आसमानों और जिन चीज़ों पर उनका साया है, के रब, और सातों ज़मीनों और जिन चीज़ों को उन्होन ने उठाया हुआ, के रब, और सातों ज़मीनों और जिन चीज़ों पर उनका साया है, के रब, और हवाओं और जिन चीज़ों को ये उड़ाएं फिरती हैं, के रब मैं तुझ से इस बस्ती की भलाई, इस में रहने वालों की भलाई और जो इस में है उसकी भलाई का सवाल करता हूं, और मैं इसके शरर और इसके रहने वालों के शरर और जो इस में है उसके शरर से तेरी पनाह में आता हूँ।


एक और दुआ:

أعوذ بكلمات الله التامات من شر ما خلق

Transliteration: A’udhu bikalimat-illahit-tammati min sharri ma khalaqa

तर्जुमा : मैं अल्लाह तआला के कामिल कलीमात के साथ उसकी मखलूक के शर से, पनाह में आता हूं।


सफर में साथी की अहमियत :

अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने कहा, "अगर लोगों को यह पता होता कि मैं अकेले सफर करने के खतरों के बारे में जानता हूं, तो कोई भी सवार रात में अकेले सफर नहीं करेगा।"

एक और रिवायत में, अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने कहा, "एक सवार शैतान है (साथ में) और दो सवार दो शैतान हैं। तीन सवार एक गिरोह बनाते हैं। 1

📕 रियाज़स सालिहिन अरबी/अंग्रेजी पुस्तक संदर्भ: पुस्तक 8, हदीस 959

रसूलल्लाह (ﷺ) के समय में यह ज्यादा लागू और अच्छी सलाह थी, क्योंकि रात में सफर करना कहीं ज्यादा जोखिम भरा था, खासकर अगर अकेले जाना हो। आज रात में सफर करना ज्यादा मेहफ़ूज़ है लेकिन आप उतने सतर्क नहीं होंगे जितने पहली बार जागने पर होंगे।

लिहाजा रात के वक्त अगर सफर करना हो तो साथीयो के साथ या गिरोह में सफर करे, ये ज्यादा बेहतर होगा।


सफर में जब ऊंचाई पर पहुंचो (हवाई जहाज पर जाओ )

इब्न उमर (रजी.) ने बताया: जब भी रसूलल्लाह (ﷺ) और आके साथी ऊंचाई पर चढ़ते थे, तो वे नारा लगते थे: "अल्लाहु अकबर (अल्लाह सबसे महान है)," और जब वे नीचे चढ़ते थे, तो वे घोषणा करते थे: "सुब्हान अल्लाह (अल्लाह पाक है हर ऐब से)।"

📕 अबू दाऊद, रियाज़स सालिहिन, अरबी/अंग्रेजी पुस्तक संदर्भ: पुस्तक 8, हदीस 976


छुट्टियों के दौरान मुख़्तसर दुआ :

इब्न अब्बास (रजी.) से रिवायत है: रसूलल्लाह (ﷺ) एक बार उन्नीस दिनों तक रुके थे और मुख़्तसर दुआएं कीं। इसलिए जब हम उन्नीस दिनों के लिए सफर करते थे (और रुकते थे), तो हम दुआ को छोटा कर देते थे, लेकिन जब हम लम्बे अर्से के लिए सफर करते थे (और रुकते थे) तो हम पूरी दुआ करते थे।

📕 सहिह अल-बुखारी 1080, इन-बुक संदर्भ: पुस्तक 18, हदीस 1


औरत का तन्हा सफर करना कैसा?

रसूलल्लाह (ﷺ) ने फरमाया के - “जो औरत अल्लाह और कयामत के दिन पर ईमान रखती है उसके लिए ये हलाल नहीं के वो अपने बाप, भाई, शोहर, बेटे, या किसी मेहरम के बगैर 3 दिन या इस से ज़ियादा का सफ़र करे।”

📕 सहीह मुस्लिम, हदीस संख्या 3270, पेज#901

वजाहत: उलमाए कराम ने इस की हद किलोमीटर में 92 किमी बयान फरमाई है। वल्लाहु आलम!

۞ अल्लाह ताला हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए, ۞ हमारे सफर को कामियाब फरमाए , ۞ सफर की तमाम सख्तियों और मुसीबतों से हमारे जानो माल और इज़्ज़तो इमांन की हिफाज़त फरमाए।

۞ जब तक हमे जिन्दा रखे, इस्लाम और इमांन पर रखे। ۞ खात्मा हमारा ईमान पर हो।

वा आखीरु दा-वाना अलहम्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन। आमीन

Courtesy © Ummat-e-Nabi.com
Mohammad Salim

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